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सामाचा
रीशत
कम् ।
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पडिकमणाइ मोगेणं कुति ॥ ३०॥ गोयमपडिग्गह १ मुक्खदंडग २ मउडसत्तमी माणिकपत्थारिआइ तव अकरणं ॥ ३१ ॥ संपइकाले सावयपडिमाओ न वहिति ॥ ३२ ॥ देवस्स ग्राम १ गोडल २ आराम ३ कूबाइ ४ न कीरइ ||३३|| चेइअहराइसु अर्डचय पडिसेहो ||३४|| राईमई विरहगीआई परिहारो ॥ ३५॥ जहन्नओ वि पारुत्ययं विणा न न्हवणं ॥ ३६ ॥ रथणीए नंदि १ बलि २ पट्टा रहता ४ महगाई ५ समणा १ समणी २ सावय ३ साबिआणं ४ चेइअ पवेसो न मंगलदीवस्त न भामणं ॥ ३७ ॥ न य आरत्तिए विसेस पूआ ॥ ३८ ॥ लवणस्स जलस्स य उत्तारिअ जलणे खिवणं ॥ ३८ ॥ न य था विष्णा आरति अ मंगलदीवा ॥ ४० ॥ न चेईए वेसा नच्चणं ॥ ४१ ॥ न य लउडारसदाणं ॥ ४२ ॥ लोण १ जल २ आरत्तिआइ ३ जिणस्स सकेण न कथं किंतु गीयत्थेहिं आइण्णं संहारेण य संजुत्तं ॥ ४३ ॥ अट्ठाहिआओ तहा आरं भिअवाओ जहा सत्तमी अट्टमी नवमीओ अट्ठाहिजा मज्झे इंति ॥ ४४ ॥ परिग्गहप्पमाणटिप्पणए मूलगुरूपासे इमं गहिअंति लिहिज्जइ न उण अन्नेहिं वि आयरिय उवज्झाय वायणावरिएहिं दिने परिग्गहप्पमाणे स नाम लिहिअवं ॥ ४५ ॥ मूलगुरूपत्थाणं काउं जाव विवक्खियं ठाणं न संपत्तो ताव धोवणीया सघठाणेसु साहूहिं न कायवा ॥ ४६ ॥ कंधकं बलियाए असमप्पिआए दंडगो न अप्पेअवो आयरियउवज्झायाणं गिव्हंतेहिं पढमं दंडओ घेतो पच्छा कंधकंत्र लिआ ॥ ४७ ॥ आयरिय उवज्झायाणं कंधकंबली विहारभूमिए वेयावच्चगरेण घेतवा न पुण वायणायरिअस्स ॥ ४८ ॥ चउरो तिप्पाओं घेतवा न पुण तिनि ॥ ४९ ॥ अपडिकम्मंत दणदायारी सावया जहा पभाए वहा संझाए बि दोहिं
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श्रीजिनपतिसूरि
सामाचार्य
धिकारः
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