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________________ - - जयमाला क भव भमण सिवारण, सोलहकारण, पयहमि गुण गण सापहम् । पण विवि तिथंका, असुह खयंकर, फेवलणाण दिवायरहा ।। १ ।। ॥ पदरी छन्द ॥ दिढ धरह पढम दसण सुिद्धि, मण वयण काय विग्यति सुद्धि मा छडहु विणउ चउ पयार जो बत्ति बांगर सियहि हार ॥ २ ॥ अणु दिणु परि पालउ सीयल भेउ, जो हुत्ति हाइ संसार हेउ । पायोपयोग जो काल गमइ, तसु तणिय मित्ति सुवणयहि भमइ । ३११ संबेउ चाउ जे अणुसरंति, बेएण भवण्णउ ते तरति । जे चापित देय सुपत्तदाण सो पाबा अणुकम अवलठाण ॥ ४ ॥ जे तव तवति बारह पयार ते सग सुरिंदिर विविह सार । ___जो साहु समाधि धरति थक्क, सो हवइण काल मुहंधूचक्कु ।। ५ ।। जो जाणइ वैयावच्चकरण, सो होइ सच दोसाण हरण। जो चिसइ मण अरिहंत देव , तसु बिसय अणंताक्खरण खेत्र ॥ ६ ॥ पव्ययण सरिस गुरू जेर मंति, चउगा संसारण ते भमंति ।। बहु सुयह भत्ति जे णर करंति, अप्पर स्यात्तय ते धरति ।।७।। 1EED
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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