SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 98
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 1६८। प्रतव्यानि मदंगानि केवली श्रत केवली, सभीपे तीर्थकन्नाम भव्या बध्नति भावतः ॥ १७ ॥ सुन्दर षोडश कारण भावन निर्मल चित सुधार के धारे । माम अनेक हरे छाति दुई जना म मृत्यु निवारे । दुःख दारिद्रय विपत्ति हरे भव सागर को पर पार उतारे ब्रान कहे यह घोडश कारण कर्म निवारण सिद्ध सुठारे । इत्युच्चार्य षोडश कारण यंत्रोपरि पुष्पांजलि क्षिपेत् । निम्न मन्त्रों का जाप्य कर के अर्घ चढ़ावें । १ ॐ हीं दर्शन विशुद्धये नमः . २ ॐ ह्रीं विनय सममतायै नमः ॥ ३ ॐ दी शील व्रतेष्वनतिचाराय नमः ॥ ४ ॐ ह्रीं भभीक्ष्य ज्ञानोपयोगाय नमः । ५ ॐ हीं संवेगाय नमः ॥ ६ ॐ ह्रीं शक्ति तस्त्यागाय नमः ॥ ७ ॐ ही शक्तितस्तपसे नमः ॥ ॐ ही साधुसमाधये नमः ॥ है ॐ ही वैयावृत्याय नमः ॥ १. ॐ ही अर्हक्तये नमः ॥ ११ ॐ ही प्राचार्य भक्तये नमः ॥ २ ॐ ही बहुत भक्तये नमः । १३ ॐ ह्रीं प्रवचन भक्तये नमः ॥ १४ ॐ ह्रीं आवश्यक। परिहाण्यै नमः । १५ ॐ ही मार्ग प्रभावनाय नमः ॥ १६ ॐ ह्रीं प्रवचन वत्सलत्माय नमः ॥ एभि मंत्र जाप्यं कुर्यादयं चापि समुद्धरेत् ।। -
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy