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ॐ ही भावश्यकापरिहाणये अयम् ॥ १४ ॥ जिन नान अवाख्यानं पीत पाचच नर्तनम् ।
यत्र प्रर्वतते पूजा सा सन्मार्ग प्रभावना ॥ १५ ॥ श्री बिन पूजा र परमारथ अागम नित्य महोत्सब ठान :
गावत गीत यजावत ढोल मृदंग के नाद सुथान पखाने । संघ प्रतिष्ठा स्चै जल जातरा सद्गुरु को साहो कर पाने,
बान कहे जनमागें प्रभावन भाग्यविशेष सुजानहि जाने ॥ १५ ।। ___ॐ ही मार्ग प्रभावनाय अर्घ्यम् ॥ १५ ॥ चारित्र गुण युस्ताना मुनीनां शील धारिणी
गौरवं क्रियते यत्र सद्वासन्यं च कथ्यते ॥ १६ ॥ गौरव भाव धरि मन में मुनि पुंगव को नित वसल कीजे ,
शील के धारक भव्य के तारक तासौं निरन्तर स्नेह धरीजे । धनु यथा निज बालक को अपने निय छूटन और पसीजे ॥
बान कहे भनि लोक सुनो जिन बस्सल भाव धेरै अध छीजे ॥ १६ ॥
ॐ हीं प्रबचन वत्सलवाय अयम् ॥ १६ ॥