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________________ ५६ ॥ -- जयमाला mm समेद शीखर सिद्या जिन बी, बन्द भवियथा भाव घरीशं । शिखर बंध जिन पयडि विशालं, घंटा मेरी ध्वजा गुण मालं 1 वन उन्नत जहां मधुक विराजें, पार्श्व जिनेश्वर महिमा छाजे उत्तम वन मधि वृक्ष विशालं, कदली स्तंभावली सुरसालं जय डुंदुभि नित मंगल नाई, सुन उपने परमान्हार्द परत समुन्नत सोहे, देखत मविजन के मन मोहे ॥ करत है रक्षा क्षेत्र सुपालं, सीता नाला सजल विशालं । चैन्य अनूषमविशति छाजे, मुक्ति गये बीसों जिन राजे || 1 अवर न तीरथ शिखर समानं, देवेन्द्रादि सुकर प्रणामं । 8 पत्ता - यह शुभ जयमाला, मात्र रसाला, जे प ंति मवि भावरि गुरू सकल सुकीर्ति, पट्ट सोहे मूर्ति लक्ष्मीसेन शुभ १ । ।। शीखर० २ ॥ शिखर० ३ ॥ शिखर० ४ ॥ जे भवि प्राणी यात्रा करहि श्रनुक्रमते शिवतिय चरहि ॥ शिखर० ॥ ॥ 1 भाव धरि ॥ ६ ॥ पूर्णम् ॥
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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