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________________ ५|| कपूर सुमार, जग उद्धार, मिश्रित घसिये प्रेमकरी । हेमादिक चित्र' जडित विचित्रं, चन्दन चरचों भार धारी । पूजा० ॥ चन्दनम् :! धवलायत राशि, कमल सुबासी, तंदुल पूज्य स अग्रवरं । शशि किरण समानं, कीजे ज्ञानं, अक्षय पद जिम सौख्य करं । पू. ॥ अक्षतं ॥ चम्पक द्वय जातं, कमल विख्यातं, केतकी कुन्द मंदार चयं । शुभ मोगर लीजे, काम हणीजे, पद पूजीजे बीस जिनं । पूजा ॥ पुप्पम् ॥ घार बहु पूरी, साकर चूरी, खज्जक लाई सुचाली करी । ___ शुभव्यंजन लीजे, थाल भरीजे, अन उतारे भाव धरी । पूजोगि० । नैवेद्य । रत्नादिक दीपं, सहन स्वरूप, कपूरामल ज्योति कर, वर कंचन पात्र', जहित विचित्र, भावे उतारो दी वरं ॥ पूजोगि० " दीपम् । कृष्ण गुरू बन्दन, तगर सुगंध, अगरादिक बहुधूर चयं, ___ दर्शादशी शुभवासं, कर्मविनाशं, श्री जिन आगे धूप करं ॥ पूजोगिः । धूपम् । द्राक्षादिक सारं, कदली भारं, श्रीफल घूम जम्बीर फलं , फणसादिक लीजे, थाल भरीजे, शी फल लीजे भविक अलं : पूजोगि० ॥ फलम् ॥ जल श्रादिक श्रीन, अर्थ समुज्वल, भारती गद्दी करी ज्ञान करं, जिन चरण तारो, तीर्थ जुहारो, लक्ष्मी सेन शुभ भाव करं । पूजोगि० ॥ अय॑म् । |५
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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