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________________ :.५७॥ - -- निशेषामर शेखचिंतपदः, दुन्दौल्ल सत्सनवः । ___ वात प्रोम्दत कांति मंहति इतः, प्रत्यक भक्तयः सब ॥ निर्वाणेश महोतमांग मुकुट, प्रकृति मभद्रतरा । ऋद्धि वृद्धि मनारतं जिनवा, कुर्वन्नु वः सर्वदा ॥ इत्याशिदः ।। श्री सम्मेद शिखर सिद्ध क्षेत्र पूजा सम्मेदाचन तीर्थ है, सब वीर्थो का राज । ___ अहँ ते शिवपुर को गये विंशति भी जिनराज । बाहानन विधि सौ करू, करूँ स्थापना सार सनिधि करण क्रियाकरी, मैं उतरू भव पार ॥ ॐ ह्रीं श्री सम्मेद शिखर सिद्ध क्षेत्र अत्र अवतर २ संवौषट् । ॐ ह्रीं श्री सम्मेद शिखर सिद्ध क्षेत्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः । ॐ ह्रीं श्री सन्मेद शिखर सिद्ध क्षेत्र अत्र मम सन्निहितो भव भव वपट् । क्षीराम्बुधि सारं, पयसमकार, मिश्रित हेम भृगार भरं । जल धारा दीजे, अशुम हणीजे, कर्ममलामल धौत करें । पूजा गिरि धाम, शिखर सुठाम, बीस जिनेश्वर पद कमलं । जहं बम विराज, महिमा छाजे पाय जिनेवर सौख्य करं ॥१॥ जलम् ।। --. -
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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