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________________ ||५|| . जयमाला परमति जिय देवं, मुरकिय सेवं, खासिय जम्म जरा मरणं ।। सिव सुह कयरावं, गय मय रा गिय भत्ति जुतिए धुणनि ॥ जय पाईमाह कम्मारिवाह, जप अजिय जिणेसर मोह दाह ।। जय संभव गय परराज डंभ, जय अहिणंद जिण परम बंभ ॥ जय मई कुमई गय देर देव, जय पुहुमप्पय सुर विहियसेव । जय जय सुपास मणिहर सुभास, जय चन्दपह जीयचंद हास ॥ अत्य पुष्फ यत जो पुफयत, जाप सायल मीयल जिय पियां । जय सेय देव कय सच सेब, अस वासवृक्ष सुरकियतीसेव ।। जय विमल जिनेसर विमलणाम, जय जिय अणंत गय परमठाए । जय धम्म धम्म देसण ममन्थ, जयमाति सांति गप गथ सत्थ ।। जय कुथु सामि गय कम्मपंक, जय जय र सामी समिय संक । जय मम्ली सामीगय मत्तभंग, जय जय मुणिमुञ्चय बिय अणग ॥ जय णमि जिणगिर सिय सन्ध संग, जय मि मुकाई य रंग। ___ जय पाम देव फणि नई परिह । जय बमाण गुण गण गरिट्ठ। घत्ता-इयथुण मि जिणेसर, महि परमेसर णात्रियम्म कलंकभर । चरपई बहु सामिय भव भयं भामिय, उत्तारि जे अटथुबई ॥ अर्ध । ॥ ६॥
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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