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________________ माधुये गन्धं निहान्न्ति दिव्यदे है देन्दुमागरककोज्यलचारूशोभैः ॥ शाज्यक्षतैः शुभगयात्रगतैरखंडै छिंद्वादश० ॥ अक्षतं ॥ मंदार कुन्द कमलान्वित पारिजातैः, जाति कदंब मसलातिथिसत्प्रसूनैः ।। गंधागतभ्रमरजात स्वप्रशस्तैः द्विादश० ॥ पुष्पं ॥ नैवेद्य मंडक सुमोदक खऊ लाद्य : मपोलिका बटक व्यंजन पंच भक्षः । सच्छालिभक्तघृतयुक्तपरैविशुद्धे, द्विद्वा० । चरू ॥ दीपवरमल कीनकलाप सार, विमता भुपगते सम्मलैचलभिः । पीता ति प्रचय निर्जित जात रूपै, द्विद्वा० ॥ दीपम् ॥ कृष्णागुरू प्रमुख पार सुगंधद्रव्य प्रोद्भुतमूर्तिभिरल वरधूप जाल।। धूमवन प्रमुदितां दितिनंदनोग: द्विवा. धूपं. ॥ नारिंग पूगदली फल नारीकेल, सन्मातुलिंग क्रमुक प्रमुखैर्फलोद्यः । शाखा सुपाकमधिगम्य विरक्त चित्त, विद्वादश० ॥ फलम् । जल गंधाक्षतः पुष्पौरचरूभिदीपधूपकैः , फलैरर्थ विधायासु श्री जिम्यो ददे मुद्दा || अर्थ । ॐ ह्रां हिं . हैं हैं हौं हूँ। असि पाउसा सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रेभ्यो हीनमः अस्प मंत्रस्य शताष्ट वारं जाप्यं कुर्यात् ॥ । उक्त मंत्र के ६५ आन्य देकर अर्घ चढावे)
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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