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________________ ॐ श्री ऋषि मंडल पूजा के प्रणम्य श्री जिनाधीश, समस्त लब्धि संयुतं । ऋषि मंडल यंत्रस्य, वक्ष्ये पूजादिमज्यशः ।। ये जित्वा तिज कर्म कर्कश रिपून्, कैल्पमाभाजिरे , दिव्येन ध्वनिनावरोधमखिलं चक्रम्यमाणं जगत् । __प्राप्ता निवृतिमक्षयामतितरा,- मतातिगामादिगा , वन्य तान् वृषभादिकान् जिनवरान् वीराबसानाहं ॥ ॐ ह्रीं वृषभादि वर्द्धमानान्तास्तीथं कर परमदेवाः अत्रावतर अवतर संवौषट् ।। ॐ ह्रीं वृषभादि वर्द्धमानान्तस्तीर्थ कर परम देवाः अत्रविष्ट तिष्ठ ठरः स्थापनम् । ॐ ही पपादि वर्ष मानान्तास्तीर्थ का परमदेवाः अन्न मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधापनम् ॥ यंत्र श्वापनं ।।। कार पंकज पराग सुगंध शतै,- साकाशशांक विमलैः सलिलैजलौघैः । सत्पात्रतामुपगतर्मधुरै विष्टै-द्विद्वादश प्रमजिनाघ्रियुगं महामि ॥ ____ॐ हीं वृषमादि वर्धमानन्तिास्तीर्थंकर परम देवेभ्यो जलम् ॥१॥ काश्मीरपूरपन मारगतोयभावे, ह्यान्तांगपरितापहरैपेचित्रः । भीचन्दनोत्कटरस: सुरसै सुभक्तपा द्विद्वादश० ॥ चन्दनं ॥
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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