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________________ मिलिय बंधय सजण चक्खु, अणेयपयार पासिय दुक्खु । विहहुई भुखल रिन्दु सुरेन्दु. मणम्मि,... ॥ ६ ॥ मणोहर द्रन्दिय सोमय चारू भपंदर मूल सिलेनम सारू । पणासिय रोवत हानर बिंदु, मणम्मि..... ॥ १० ॥ दुलंघण ए विणु पासह बृह, यामारि वि मक्कई सत्त समूह । किंवाष हवेई अलं अरविंदु मणम्मि.... । ११ ॥ यत्ता-वर खगेंदु झायंवदा, गारूडिया मिटि विसुजीह । भरियण यणाणंद जिष्णसमरंता उवसग्ग तह ॥ १२ ॥ महाय॑म् ॥ सर्पत्सपेंषु दर्प, स्फुट तरन तरोत्तार फुत्कार वेला , संघट्टोत्पत्ति बाताहत शठ कमठोद्भुत नीमून जातः । खेलत्स्वर्गापवत्तिर्राण तरल सल्लोल डितिर पिडा, ___ व्याजा भी पार्श्वनाथो गयविजय यशो राज हंसो बताद्वः ।। इत्याशीर्वादः ।। दधे मूनहिताशेषः नाता सर्व देवता । मयाक्रमाद्विसमेत निर्गच्छामि जिनालये । इति विसर्जन मंत्रः ।। शांति वृद्धि जयं सौख्य, मैश्वर्यारोग्य मिच्छसा । कल्याणं तुष्टि तुष्टिच संतुतेऽहत्प्रसादतः ॥ ।'५३॥
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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