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________________ 30 - * जयमाला घर सम्मत बिहु सण हो, भषियण जिसवर समरणे । मासिप पाउ असेस सहू, उमजम दिवार विधरणे ॥ १ ॥ (राग-विराग सनातन) सुदुद्धर अंजण पुब्धय काउ, दिसाकर तासण मेह णिणाउ । सुदुप्प विपिंजण देउ करिंद मणम्मि भर्णता देउ जिणंद ॥ २ ॥ पसत्त समि हिय दितु समूह महावल लोल लोला विह जीह । सरोसण दे उप कम्म मयंदु, मणम्मि० ...... । तपाल महीलह झंपड़ सीस, दिणेसर सरिण य लोयण मीस । हवेई यमरण पयासुर इंदु, मणम्मि.......... विभिय वेलण हिंग्गण वेल, जलोमन जीव पसासिय शेल । अथाहु विगोप्पय मित सुरेन्द मणममि........" फुडंति फोडायण रूद्धय यंति, विज्ञोय खयंका शायक यति। मग मि. . .. .... ॥ ६ ॥ दुसंचर तोरण पुन्वय दुम्गि; असंख महीरूह भीसह मग्गि ।। ___ कहेप्पणु लगाई तक्कर विदु, मन्मि ... ॥ ४ ॥ घिराण वि सक्कई तिब्ब जलंति, जगत्त उजालण साायक यति ।। मसोम हवेई सद्दी जम चंद, मणम्मि, .. ॥ ॥ - - ॥५२॥
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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