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________________ ॥५०॥ पूजां प्रकुर्वन्हृदयेद्धानं सर्वेप्सितं यच्छतु मंत्र राजं ५ २ ।। गृहाङ्गणे कल्प लता प्रसूनं चन्तामणि चिन्तित वस्तु दाने । गावश्च तुन्या किल कामधेनो यस्यास्ति भक्ति कलि कुंड यन्त्र ३ ॥ नमामि नित्यं कलि कुण्ड यन्त्र सदापवित्र कृत रत्न पात्रं । रत्नत्रयाराधन भाव लभ्यं सुरासुरैर्वेदितमाद्यमिव्यम् ॥ ४ ॥ सिंहेभसर्पारित जान्धि चौरा, विषादयो न्यानिसदापतिः । व्याधादयो राज्य भयं नृणां हि नश्यन्त्यवश्यं कलि कुंड पूजनात् ॥ ५ ॥ प्रदुष्टबन्ध गर्नियन्त्रित्रुटति शीघ्र प्रपन्सुमंत्र | पराचि सारा ग्रहणी विकारा, प्रयान्ति नाशं कलि कुएड पूजनात् ॥ ६ ॥ वन्ध्यावारी हु पुत्र युक्ता, संसार सक्aा प्रिय वित्यरक्ता 1 पारित वित्त कलि कुण्ड चिन्ता, नमाम्यहं तं सततं त्रिकालं ॥ ७ ॥ सर्वे प्रतिघात दक्ष, सौख्यंयशः शांतिक पौष्टिकाभ्यां । ८ ।। नमाम्यहं तं कलिकुण्ड यंत्र विनिर्गतं यज्जिनराजक्त्रत् ॥ स्तवनमिदमनिन्द्य, देवराजाभिरन्यम् पठति परम भक्तया योनरः सर्वद हि । " सकल सुखमनं कल्पित प्राय सर्वं विनिहित विनी यंत्रराज प्रसादात् ॥६॥ ॥ इति श्री कलिकुण्ड स्तवन विधानम् ॥ गंगा पगा तीर्थ सुनीर पूरैः शीतैः सुगन्धे घनसार मिश्रैः । दुष्टो विनाश हेतु समर्चये श्री कलि राडयन्त्रम् । १ । ... 112011
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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