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________________ ॥४८॥ विवाद विनाट विपाद विराम, विजंत्र विमंत्र वितंत्र विकाम । प्रसीद० ॥ २॥ विशेष बितोष विमोष विघोष, विवोघ विशोध विरोध निदोष ॥ प्रवीद० ॥ ३ ॥ विगन्ध त्रिबंध विशब्द विरूप, विगह विदेह विमोद विकूप ।। प्रसी३. ॥ ४ ॥ विवर्ण विकर्ण विवित्त विचित्त, विरेख विलेख विमेष विचित प्रसीद. ॥ ५ ॥ विमाय विकाय विदंभ विलोभ । वितर्ष विमर्ष विदर्भ विशोभ । प्रसाद. ॥ विसाध्य विराध्य त्रियाध्य विशुद्ध विशोक विलोक, रितंद्र विबुद्धः ॥ प्रसीदः । विवाल विबाल विकाल विमाल, विशाल विमाल विजाल विताल, ॥ प्रसाद । श्री संघ मांगल्य विधान पूर्ति, विशालयक्षस्थल दिव्य मूर्तिः श्री शांतिनाथो चिंत चंद्र कीर्तिः, ददातुवः सर्व सुखातमूर्तिः । अधैं । कल्याणं विजय भद्रं चिन्तितार्थ मनोरथाः शांतिनाथ प्रसादेन, सर्वे अर्थाः भवन्तु नः || || ईत्याशिर्वादः ।। 8 अथ श्री कलिकुण्ड (पार्श्वनाथ) पूजा 3 हीकारं ब्रह्मरूद्ध स्वर पर कलितं, वन रेखाष्ट भिन्न वनस्याग्रंतराले प्रणयमनुपमा राहतं वर्णान्ताद्वान्सपिंडान् हभमरघझसम्वान्वेष्टयेतद्वदन्ति वज्राणां यंत्र मेतत् पर कृतमशुभं दुष्ट विद्याविनाशम् ॥ १ ॥ ॥४८॥ - - - - -
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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