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________________ छत्रत्रयोसम विभूति घिरायमानं, देवांगना ललित सुस्वर गीयमानं । सचामरालि परिबेष्ठित युग्म पत्र, शांतीशमीश मुनय रहभिजेहम् । वरु ॥ यज्जन्म काल समुपागत देवराज, निर्भाक्तिस्त्रिदश मेरु महाभिषेकः । दुग्धाब्धि पारि निव है: परमोत्सवेन दीपैर्भजामि भगान्तमुमेशशांति । दीपं । दुष्टाष्ट कर्म गिरि भंजन बन तीर्थ', मिथ्यान्धकार पटसोज्वल वाशमूर्य । गंभीर दिव्य ननदामृत पुष्ट भन्ने शांतिजिनेन्द्र ममलं परिधृपरामि । धूपम् । श्री इम्तिनागपुर संभव नाथ मीशं, निर्वाण धामगत रुप मनंत सर्व । श्री नारिकेल वर दादिम मातु लिंगैरेरोशर रजमलं परिपूजयामि । फलम् । काष्ठा संघ मुनीन्द्र वर्ग विबुधैः श्री भूपणोः संस्तुतः । संसृत्याविपार लन्धि काणैः श्री कर्ण धारोगिता । अम्भश्चन्दन पुष्पतंदुल हरि: स्नेहप्रियाद्यपितो । भूयान्मोक्षफलायते जिनवराट् श्री चन्द्र कीर्तीश्वरम् । * जयमाला ॥४७॥ विराग विभाग विरोग वभोग, विकार विरेक मिनेन्द्र वियोग । प्रसीद सनातन शांति जिनेन्द्र, स्वपाद सरोरूह भव्य शतेन्द्र ॥१॥
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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