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________________ ॥२॥ T जय वीस जिनेश्वर विधमान, मनु पंच शतक पर धनु प्रमान । जय भव्यकमल प्रतियोध देत,...... सीमंधर प्रणमु जिन परिन्द चन्द्र जुगमंधर बहु बलिन्द । हुँ बन्द बाहु सुवाहू स्वामी, जिन लीन विदेहे मोक्ष ठाम ॥३॥ सुजात स्वयं प्रभ जिन वरिन्द, अपमानन धर्म प्रकाशकंद । नंत वीर्य सौरी प्रभोय, बन्दु विशाल बज्जर धरोय ॥४॥ चन्दानन पाठम दीवमवीर हूँ प्रामु जिनसो भह तीर । तिहां पुष्कार्द्ध घिन मद्र बाह, भुयंगम ईश्वर जगह नाइ ॥५॥ नेमि प्रम वन्द वीरसेन, महाभद्र भव्य हित मधुर वैन । पद नम यशोधर शुद्ध भाव, जय अजित वीर्या वर मक्ति पाय ॥६॥ यह नाम जपंता जाय पाप, नहीं व्याप भव भव मोह ताय । जिन नाम जपंता होय रिद्धि, अनुक्रमे लहेते मोच सिद्धि ॥७॥ घनाः-जय बीस जिनेश्वर नमित नरेश्वर विद्यमान जिन सौख्यकराः । जे भरणे भयावे, अरू मन भाचे, गधे अविचल मोक्ष धराः ।। महायं । GAKO . ॥४२॥
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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