________________
१॥
3
अत्र विष्ठ २४ः ठः । अब मम सन्निहितो भव भए ६षट् सन्निधि करणाम ।।
अथाष्टक। कपर वासित अल भृत हेम भृगं धारा त्रय ददति जन्म जरा पहान्योः । तीर्थंकराय जिन विशति विद्यमान संचर्चयामि पद पंकज शांति हेतु ॥ जलम् ॥ काश्मीर चन्दन विलेपन अग्रभूमि, संसार ताप हर दूर करोसि नित्यं । ती चन्दनम गादत्त रहा लिजनितेच, अल्प पदम्य सुख सम्पनि प्राप्ति हेतु ।। ती अक्षवम् । अम्भोज चम्पक सुगन्ध केरोमिपूजा मदनस्य मानंच विमर्दनाय ॥ ती० । पुरुष । नैवेद्यकैः शुचितरघृत पक्व खंडः, सुधादिरोगहर दुर करोतिनित्यं । तीर्थक ॥ नैवेद्यम् । दीः प्रदीपित जगत्त्रय रश्मिजात दूरीकरोति तम मोह विनाशनार्थ । तीर्थंक- ॥ दीपम् ।। धूपैः सुगंध कृष्णागुरू चंदनाय गंधैः सुगंधी कृत सार मनोहराणि । तीर्थंक ॥ धूपम् ॥ नारिंग दाहिम मनोहर श्री फलाच फलरभिष्ट सुख सम्पति प्राप्ति हेतुः । जीर्थ क. : फलम् ।। वागंध पुष्पादत व्यंजनैश्च, सद्दीप धूपफल मीश्रित हेमपात्र । अर्घ करोमि जिन पूजन शांति हेतोः संसारपार करूणाकुरू सेवकानां ।। अयम् ॥
-
-
-
-
-
* जयमाला पत्ता- जय वीस जिणेसुर, गामीत सुरासुर, चक्रीवर पूजित वरणा।
जय ज्ञान दिवाकर, गुणरत्नाकर, पूना नाशै विश्न पणा ॥१॥
॥४१॥