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हम्यविशाकर सुगंध महाप्रधूपैः कपूर चन्दन लविंगललावयुक्तैः ॥ सम्पूज ॥ धूपम् ॥ ७ ॥ रम्याफले स्फुटफल पनसेन कैरच कंकोरकैः कमल कर्कठिकादिमिश्च ॥ संपूज ॥ फलं ॥ ८ ॥
श्री काष्ट संघ महीचन्द्र पदाद्रि भानो, तोयादिभिः सुमति कीर्ति गुरु गरिष्टं ॥ योवत्थमु स लभतेवर भोगसौख्य, लक्ष्मीवाशप्य यशवंतमुनीश्वरेण ॥ अर्थ ।।
रत्नत्रयस्य नाप्यं देयात् ।। १ ॐ हीं सम्यग्दर्शनाय नमः २ ॐ हीं सम्यग्ज्ञानाय नमः ३ ॐ हीं सम्यक् चारित्राय नमः ।।
॥ जयमाला ॥ श्री मनिजनेश्वर महं प्रणिपत्य कुर्वे श्रीमद्गुरो गुणगणान्प्रतिबुद्ध बुद्धया ।
श्री वासुदेव तनयो कवि जीवन है, भट्टारकस्य सुमतेर्जयकारी माला ॥ १ ॥ निखिलादि जिनाममदेह धरं धरणीधरवद्वहु शास्त्र धरं । प्रश मामि सुकीतिं परं सुमतिः मतिदं गतिदं कृतदिव्य नुतिः ॥ २ ॥ निज बोध सुबोधित शिष्य परं वचनामृत तर्मित भव्यभरं ।। प्रणमामि । ३ ।। शुभ नित्य विवेक विचार परं, विजितारिभरे स्वजनेष्ट करें ॥ प्रणमा० ॥ ४ ॥ हत मोह मदान्त्रित सैन्य बलं, बल निर्जित झोध मनपा ॥ प्रणमा ।। ५ ॥ सुतपोव्रत सत्कृत देहधरं, धृतधर्म परं परमेष्ठी परं ॥ प्रणामा ।। ६ ।। निचित्त निवृत्ति पुरा कलुषं, रजनी पति पधित सद्धपुष ॥ प्रणमा० ॥७॥ धत दिघदयं विधिमालनक, कलि पातक संघ निवारणाकं ॥ प्रणमा० ॥ ॥
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