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________________ ॥३२॥ - - जिन जनाति हरो हत पातका सुनयन: प्रतिवन्दित भक्तितः ।। सुमतिः ॥ ५ ॥ निज गुस्यो मुनिमान्य गुणोदधि, स्वजमहो कवितागुण बारिधिः ॥ सुमतिः ॥ ६ ॥ बिनलपार्जित नागमहा निधिः, सकल मन्त्र समुच्चव तोपषिः । सुमतिः ॥ ७ ॥ प्रबल पंच व्रतादि करं पर, प्रश्ति शास्त्र कलार्थ पर परः ।। सुमति • !! ॥ ( मालिनी छद) निखिल खन विकारान् जयन्नैक वस्तु, प्रऋदित निगमाधिस्त्यक्त संसार संगः ॥ जयति सुमति कीर्तिः सर्व गच्छे हि बंद्यो, विदित गुण गुणौषः सर्व मट्टारकेशः ॥ इति गुरू स्तुतिः ॥ पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।। ( अथाष्टकम ) नाना नदी मिन्यु सुताघोषः श्री मत्कलिंद गिरिजा विधियोभत्रैश्च । सम्पूजयामि विधिना विधिना तमादो भट्टारकः सुमति कीर्ति मुनीश्वरेन्द्रः ॥ जलम् ॥ १॥ श्री चन्दनैः सकल चन्द्र करावदातैः पाथोहोन्दव पराग पराग कारें । । चन्दनम् ॥ ॥ २ ॥ स्म्याचतैः परिमलाक्षत चञ्चरीकै लीला विलोलकमलाकर निर्मितश्च ।। समूज ॥ अक्षतं ।। ४ ।। शुम्भत्सुरेश्वर तरु प्रभः प्रसूनः पंकेरुहै बकुल जाती सुकेतकैश्च ॥ सम्पूज ॥ पुष्पम् ।। ३ ॥ स्फूजप्रभापरितिरस्कृत चंद्रबिम्बैः सुस्वादुभिश्च विविधैः घृतायः ॥ सम्पूज । नैवेद्यम् ॥ ५ ॥ उर्जन्कदम्ब कलितेस्फुरदभिर्वा दीः प्रकाशितदिशैरमपुजहारैः ॥ स पूज ॥ दीपम् ।। ६ ॥ ॥३२
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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