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________________ - - 181 ॥ अथाष्टकम् ॥ पयः पयोधेस्बिदशापगाया, पयः पयोजाव पराग रम्यम् । समन्त मश्रुत देवतायै भक्त्या पराये परया ददामि ॥ ।' ॐ ह्रीं जिन मुखोद्भव सरस्वती देव्यै जलम् ॥ सव्य सौरभ्य समाहुतालि कोलाहल स्तोत्र मनोमिरामैः । पारपीर सत्यनकना गिर्द हि जीर्ष कृतां यजामि । चन्दनम् ॥ २ ॥ सदावदातः सरलविचित्र मुनमनः साम्यमपाश्रयभिः । सदचतैरक्षत शासनानां तीर्थंकराणां गिरमर्चपामि । अक्षतम् ॥ ३ ॥ मन्दार सन्तानक पारिजात जातैः प्रवनर लिचुम्बिताः । देवेन्द्र नागेन्द्र नरेन्द्र वद्यां, गिरं जिनना महमर्चयामि । पुष्पम् ॥ ४ ॥ शान्पोदनः क्षीर दधीच भक्ष्य, द्राक्षाम्र खरक चोच पाय: : प्रमाण बाकादि विरोध मुक्तां स्पाद्वाद वाणी परिपूजयामि । नैवेद्यम् ॥ ५ ॥ शिखाधरैः स्नेह दशान्तमोह मलं विमुचभिरल प्रतापैः । सदा समस्थैरिब भाजन स्थैः प्रदीपकैः भी श्रुतमर्चयामि । दीपम् ॥ ६ ॥ सग्रंथ पर्णेरूज संत एव स्वकंदयद्भिः प्रसरभिर्ध्व । धूपैर्विधूमानल संशयभिः कण्ठोपमैर्गा मइमर्चयामि । धूपम् ॥ ७ ॥ ॥२६॥
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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