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________________ ॥२८॥ सकल भव्य मनोम्युज भास्करी, भत्रिक मानस हंस मनोहरी । धृतम् पक्षसु चन्द्र करोन्जलाजयतु........ ॥२॥ अमल बोध चतुष्टय पूरिता, परम केवल लक्षित चिन्मयी । विदित विश्व विचेष्ठित वाग्वर, जपतु० ..... ॥ ३ ॥ दशमाधिक अंग विवद्धिता, नव पदार्थ नवीकृत भूषणा । . रुचिर वर्ति पदावलि नूपुरा, जयतु० ...... ॥४ मनसि जोत्कट कुञ्जर सिंहिका, कलि कराल तमोरवि सत्प्रभा । व्यसन धुन्द दवानल शरिषी, जयतु....... ॥ ५ ॥ वचन जाय निवर्हण पण्डिता, हृदय कल्पित कल्पतरूपमा । समुर शक्रशतेन नमस्कृता, जयतु.. ... ॥६ अनुक्रमामृत संश्रित निश्चला, शिव सुखेष्ट फलान प्रदायिनी । भवभृतां भवारि तरंतिका, जयतु......... || त्रितय रस्म परायं निधान भू क्तित तथ्य वितर्क पटीयसी ।। जनन मृत्यु जसदि भया पहा, जयतु... सतत संश्रित कामित कामिगविविध विघ्न विपक्ष विघाटनैः । भगवती मम तिष्ठतु मानसे, जयतु........| उदयेनान्त सेनेन कृतेयं भारती स्तुतिः । भूयादशान नाशाय, पावनी भव्य देहिनां ॥ १० ॥ इति शारदा स्तुतिः ।। Pा
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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