SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - जय जय विमल सुभिरमस देहा, जयहि अणंत अणंत जिणेशा । जय जय भाप सु शम्प पयामा जय जय सांति सांति नय भास। ॥५॥ जप जय कुथु परम मुभ कारण जय अर कणि कलमस दारण जय जय मल्लि मरण भय भजिय, जय मुणिसुब्धय सुर पर पुज्जिय ॥६॥ जप ण मि विकल कमल दल कोमल, अपहि परिहणेमि अतुलीबल । जय जय पास फणी मण भूषण, जय जय बढमाण गय दुषण ॥ पत्ता:-इप णर देवे, णीप सूपसंसिए, जिण चौबीसइ पणपिया भत्तिए । एजि वर जो अशुदिणु भावई, सो पुणु अणरण पच्छई आई ॥ ८॥ ॐ ह्रीं वृषभादि महाशरान्तेभ्यो मार्य निर्वामीवि स्वाहा ॥ * अथ सरस्वती (शास्त्र) पूजा के देवि श्री प्रतदेश्ते भगवति, त्वत्पाद पंकेरूहद्वन्देयामि शिली मुखत्वमपरं, भक्त्या मया प्रार्यते । मातश्चेतसि विष्ठ मे जिन मुखोद्भते सदापाहिमा , दृग्दानेन मयि प्रसीद भवती सम्पूजयामोऽधुनः ।।१। स्थापनम् । इन्युच्चार्य पुस्तकोपरि पुष्पांजलिंक्षिपेत् । वृषभ वक्त्र सरोरुह निर्गता, प्रकटिता वृष रेन गणाधिपः । जगति तत्व विदां हृदयं गता जयतु जैन वचोऽमल भारती ॥१॥ . . .
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy