________________
जम्बीर नारंग लविंग पूग फलदामीष्ट फलाभिलाषः ।
अर्चा मरोरः श्रुतदेवतायै, जगत्यहं श्री जिन नायकस्य । फलम् ८ ॥ सिद्ध गुणैर्ने विशाल रम्यं वस्त्र' र स्त्री बदनोपमान :
संशोम कौशेष पटानुकूलं ददामि जैन श्रुत देवाय ॥ वस्त्राभरणम् ॥ ६ ॥ . पाटीर पाथोऽक्षत पुष्प पुन्ज चरू प्रदीपोत्तम धृप धूम्रः । ___ फलैजिनेन्द्रास्य पयोज पुत्रीं यजामि जैन श्रुत देवता ताम् ॥ अर्घ ॥ १० ॥
ॐ जयमाला घन मोह तमः पटलापहरं, यम संयम संजम भावधरं ।
____ भृत भूरि भवार्णव शोक हर, प्रणमामि सुबोध दिनेश महः ॥ १॥ कृत दुष्कृत कोसिक भाव हरं, मिथ्यात्व निशाचर दुर करं ।
___ भुवि भव्ययोज विकास सहं, प्रणमामि सुबोध दिनेशमहे ॥ २ ॥ कलि कर्दम कम्मप. शोपमलं, रूदयादवसर्पित कममलं ॥ भुवि ।। ३ ।। निखिलामल वस्तु विकास पद, धृत दुधर दुर्भर प्ठ पदं । भुवि० ॥ ४ ॥ जड़तामपहार विहार समं, सुमनोभव भंग विभंग समं ॥ मुवि० ॥ ५ ॥ रुदयामल लोचन लक्षमितं, जिन भासुर भानु सहस्र युतं ॥ भुवि० ॥ ६ ॥
निजमण्डल मंडित लोक मुखं, निज सत्त्व समर्पित लोक सुखं || सुवि० ॥ ७॥ ॐ ह्रीं जिन मुखोदभूत सरस्वती देव्य महापं निर्वपाम ति स्वाहा ।
-
॥३०॥
-
-