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________________ ॥ २२॥ श्री नाभि नंदन जिनं प्रणिपत्य भक्त्या पद्दे शनामृत रसेन जगत्रपूर्णम् । श्री काष्ठ संघ पर मंगल हेतु भूत, यदागमे निगदितं प्रकरोमि पूजा ॥११॥ ( पुष्पांजलि क्षिपेन ) [ निम्न स्वस्ति विधान पढ़ते हुवे पुष्पांजलि क्षेपण करना चाहिये. ] स्वस्ति त्रिलोक गुरवे जिन पुंगवाय, स्वस्ति स्वभावात महिमोदय सुम्बिता I स्वस्ति प्रकाश जोर्जित मयाय, स्वस्ति प्रसन्न ललितासत वैभवाव ॥ १ ॥ स्वच्छल द्विमल बोध सुधाप्लाय, स्वस्ति स्वभाव पर भाव विभास काय | त्रिलोक विततै चिदुद्गमाय स्वस्ति त्रिकाल सकलाप विस्तृताय ॥२॥ द्रव्यस्य शुद्धि मधिगम्य यथानुरूपं, भावस्य शुद्धि मधिका मधि गंतु कामः | थालम्बनानि विविधान्यबलब्ध वल्गान् भूतार्थ यज्ञ पुरूष करोमि यज्ञ ३५ पुरुषोत्तम पावनानि वस्तून्यनूनमखिलान्ययमेक एव ज्यादिमल केवल बोध वन्हौ, पुण्यं समग्र मध्येकमना जुहोमि ॥४॥ पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।: (आत्राननम् ) पाप सन्ताय दर्ता, न्व कीर्तिः क्षतमदनपुर्षात कर्म प्रणाशः ॐ ह्रीं विधियज्ञे जिन प्रतिभाग्रे सार्वः सर्वज्ञनाथः सकल तनुसृकां त्रैलोक्या I R
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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