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________________ ॥ ११ ॥ पुष्प वृष्टि प्रफुल्ल पद्मोत्पल कंटकारि, कदम्बकेश्चंपक पाटलाभिः । अशोक पुष्पैः वरपारिजातै जिनस्य पूजां महतीं करोमि ॥ उक्त श्लोक पढ़ते हुए श्रीजीपर पुष्प वृष्टि करना चाहिये गंधोदक स्नपनम् - साद्र चन्दनासा, प्राचूर्य शुभ्र विषा श्रेणी समाश्लिष्टया ॥ ॐॐ कर्पू रोवण मौरस्याधिक गंधलुब्ध मधु सद्यः संगत गांगया मुनिमा श्रोतो दिल. स्पृहा सद् गंधोदक धारया जिनपतेः स्नानं करोमि श्रियैः 1 ॐ लय जय अर्हतं.... गंधोदक स्नपनम् ॐ स्नानानन्तर मर्हतः स्वयमपि स्नानाम्बुषेकाद्रितो II भार्गवाचत (पुष्पदाम चरूकः दीपैः सुधूपैः फलैः H कामोदाम गजांकुश जिनपतेः स्वभ्यर्च्य स्वस्तोत्रया सः स्यादारवि चंद्रमचय सुख प्रख्यात कीतिं ध्वजः ॥ निर्वपामीति स्वाहा ] पुष्पांजलि चिपेन १९.
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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