SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 1.१०॥ ॐ जब जय अर्हन्त भगः सर्वोषधि स्वपनम् ॥ पुण्यैः वार्मिः इत्यादिना अर्थ " ( शांतिधारात्रयम् ) 1 संपूजकानां प्रति पालकानां यतीन्द्र सामान्य तपोधनानां देशस्य राष्ट्रस्य पुरस्य राज्ञः करोतु शांतिर्भगवान् जिनेन्द्रः 11 "es that में पुष्प अक्षत दीपक रख कर आरती उतारें दध्युज्ज्वलाचत मनोहर पुष्प दीपः पात्रार्थितं प्रतिदिनं महवादरेण 1 मैलोक्य मंगल सुखानल कामदार, मारातिकं तवविभोरवतारयामि " ( इति मंगलार्तिकात्रतारणम् ) ( चारों कोनों के ४ कलशों से अभिषेक करे ) ॐ हृवोद्वर्तन कल्क चूर्ण नियः, स्नेहापनो दंतिनोवर्खाढ्य विविधैः फलैश्च सलिलैः कृत्वावतार क्रिपां । म: सद्धते जेल घरा कारैश्चतुमिदैः । रंभापूरितदिङ मुखैरभिपत्रं कुर्मत्रिलोकीपतेः ॐॐॐ जय वय श्रहंतं "चतुः कलशस्नपनम् पुण्यैः वाभिः ईत्यादिना श्रर्धम् । निम्न श्लोक पढ़ते हुए भगवान के शरीर पर चन्दन का विलेपन करे: ... याच वृद्धया परया सुगंध्या, कपूर सम्मिश्रित चन्दनेन । जिनस्य देवासुर पूजिवर विलेपनं चारु करोमि भक्त्या ॥ ( चन्दनानुलेपनम् ) ( ।। १० ।
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy