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खिर गये जब सुर आप के. मायापि तनु निरामये । चन्दन प्रमख मकुटाग्नितें शुभ क्रिया का सब सुर गये । श्री पन्च कल्याणक महातम, मुनत भवि सुख पाइये ।
कहि भाव सेन सुदेव या लोक्य मंगल माइये ॥५॥ मलित चन्दन पुष्प शुभारत-श्चरू सुदीप सुधूप फला को ।
धवन मंगल गान रखाकुले जिन गृहे जिनराज महं. यजे ।। ॐ ह्रीं श्री चतुर्विशनि ती काग गर्भ, जन्म, तप, शान, निर्वास पन्च कन्याणकेभ्योऽध्य निर्वामीति स्वाहा ।
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* श्री लघु अभिषेक पाठ • ॐ श्री मन्मंदर सुन्दरे शुचिजलै धौतः सदभावतः । पोठे मुक्ति कर निधाय रचितं, त्वत्पाद पद्म स्रजः ॥
( पीठ प्रज्ञालन, श्री कारार्चनं ) इन्द्रोऽहं निज भूषणार्थ ममलं, यज्ञो पवीतं दधे । मुद्रा ककरण शेखराण्यषि तथा जैनाभिषेकोरसचे ॥१॥
- ( इन्द्रा भरणं यज्ञोपवीत धारणं ) - इन्द्र, अग्नि, यम, नैऋत्य, वरूण, वायु, कुबेर, ईशान, धरणेन्द्र, सोम इति दश दिग्पालेम्पोअर्थ ।