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गाजियो ऐरावत पड़िय सुर, जन्म नगरी आइया । इन्द्राणी माया मयि शिशु रखि, मात से प्रभु लादया । जय बय कात सुर देव नाचत, मेरु गिरि पै ले गये । ,
इम सहस अाठ सु हेम -, क्षीर जल ढारत भये ॥२॥ करि श्रृंगार सुलाप मात पित सौषियाराज तिलक सुरदेय धर्म न पिया । करि विवाद शुभ राजनीति मय धारिया , अन्त वैशम्प सुपाय मन्त्र नियरिया ।
ममता निवासी धन्य प्रभु तुम याय लोकान्तिक भने । प्रभु चार मावे भावना तहां इन्द्र हो पाये धने । बारूद है प्रभु पालखी में, बसन जन समझाधिया ।
नमः मिद्ध कर लौव करिके तप कल्याणक पाविया ॥ ३ :। शैल पक्ष भुनि वय ऋतु में प्रभु तप करें, मनः पर्यय शुम पाय भव्य जड़ता हर ॥ श्रादार रिहार कर सुनिहार रे नहीं . कर्म घातिया माश, ज्ञान केवल वही ॥
लाह ज्ञान केवल इन्द्र ज्ञानी समशरण रचाइया ॥ गणधर मुमनि अरु आजिका उ देव नर पशु पाइया ।। करि धर्म तन्द बखान में बहु भव्य जीव सम्बोधिया ।
थुति करि इन्द्र विहार को, गिरि शिखर योग निरोधिया ॥४ एक मास किय ध्यान शुम्ल मन धारिया, प्रकृति सहित जु अघातिय कर्म नियरिया । लघु पन्ताक्षर माहि प्रभु गत शिव तये , रहे केश नख, तन परमाणु विर गमे ।