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॥ श्री बलरागाय नमः .
ॐ समुन्य पन्त्र कल्याणक *
भद्वारक-भुवन कति त । प्रणम् जिन चौबीस के पन्च कल्याण जी, गर्भ अन्न तर ज्ञान अह निशस्य । चाहि समन्वय मंगल पाठ स्वान जी, नजि मार्थ फ्यान करे वग ब्रानजी ॥
.. अय जान धारी नई आबे, मात बप्न बु देखिये ।
टि के प्रभातहि पूछि रिउ का फल तीर्थ कर लेखिये ॥ सास्त्रि इन्द्र अबधि धनद पन्द्रा मात्र वर्षहु रत्न सों ।
छप्पन कुमारी गर्भ शोधन, राखि माता बत्न सों ॥१॥ इह विधि उन्मत्र धार, इन्द्र पर सुर मये, प्रमोनर नत्र मास माव पूरब भये ।। अन्म ममय तद देश घंट हरि बाजियो, इन्द्र चल्यो सब मैन्य, गमन तत्र मावियो ।