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ॐ
ॐ लोक निवासिने नमः ॥२५॥ ॐ परम सिद्धो नमः ॥ २६ ॥ ॐ अर्हसि भ्यो नमः ॥२७॥ ॐ केवलि सिद्धेभ्यो नमः सिद्धभ्यो नमः १२६॥ ॐ परंपर सिद्धस्यो नमः | ३० ॥ ॐ अनादि परमसियो नमः ॥ ३१ ॥ ॐ अनायत सिद्धेभ्यो नमः ॥ ३२ ॥ ॐ सम्यग्दृष्टे आसन्न भव्य निर्वाण वृजाई अग्नीन्द्राय नमः स्वाहा ॥
३३ ॥
इस प्रकार ३३ आहुतियां देने के पश्चात् निम्न काम्य मंत्र पढ़कर घी की ३ आहुति देवे ।
सेवाफलं षट् परमस्थानं भवतु अपमृत्यु विनाशनं भरतु B
फिर नीचे लिखे पांच मंत्रों
को
पढ़कर वर्पण करे ।
ॐ ह्री परमेष्टिस्त पयामि स्वाहा ॥
१ ॥
प्राचार्य परमेष्ठिनस्तर्पयामि स्वाहा ||३||
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ही सर्वसाधु परमेष्ठिनतर्पयामि स्वाहा ५ ॥
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ॐ ह्रीं सिद्धपरमेष्ठिन स्तर्पयामि स्वदा ॥ २ ॥
ह्रीं उपाध्याय परमेष्ठिनतर्पयामि स्वाहा ||४||
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( अवान्तरे पंच तर्पण नि )
इसके बाघ निम्न मंत्र पढ़कर कुण्ड के चारों कोनों में दूध, दही इक्षुरस और सुगंधित बल धारा देनी चाहिये । धारा घोड़ी २ और पतली ही देना चाहिये जिससे व्यग्निन
बुझने पादे | इस को पर्याय कहते हैं ।
ॐ ह्रीं अनि परिषेचयामि स्वाहा ( इति पर्यावणं )
इसके अनंतर नीचे लिखे मंत्रों से २ आहुतियां देवे ।
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