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संस्थाप्य पूज्यः सममाहवनीयो, सत्कार्य शांत विविना दुतीशः । ॐ ही द्वितीये वृत्त गणधर कुण्डे आहवनीयाग्येऽर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा श्री दक्षिणाग्नि पर केवल स्व शरीर निर्वाण नुताग्नि देव ।
तिरीट संस्फुर दसौमयापि, संस्थाप्य पूजामिसुकार्य शान्त्यै ॥ ॐ ह्रीं त्रिकोणे सामान्य केवलि कुपडे दक्षिणाग्नयेर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा । इसके बाद निराला से आचार्य उच्चारण करने वाला) प्रत्येक मंत्र के बाद स्वाहा शब्द का उच्चारण करते
करे एवं यजमान (होम हुए होम करे 1
॥ अथ पीठिका मंत्र ॥
१ ॥
ॐ सत्यजाताय नमः ॥ ॐ अनुपम जाताय नमः ॥ ४ ॥ ॐ अक्षयाय नमः ॥ ७ ।। ॐ अनंत दर्शनाय नमः ॥ १० ॐ नीरज से नमः । १३ ॐ श्रभेद्याय नमः । १६ ॥ ॐ अप्रमेयाय नमः ॥ १६ ॥ ॐ भविलीनाय नमः ।। २२ ।।
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ॐ प्रज्जाताय नमः ॥ २ ॥ ॐ स्व प्रधानाय नमः ॥ ५ ॥ ॐ अव्यावाधाय नमः ||८|| ॐ अनंत वीर्याय नमः ॥ ११ ॥ ॐ निर्मलाय नमः ॥१४॥ ॐ अराय नमः ॥ १७ ॥ ॐ
ॐ परम जाताय नमः ॥ ३ ॥ ॐ अचलाय नमः ॥ ६ ॥ ॐ अनंत ज्ञानाय नमः ॥ ६ ॥ ॐ अनंत सुखाय नमः ||१२|| ॐ श्रच्छेद्याय नमः ॥ १५ ॥ ॐॐ अमराय नमः ॥ १८ ॥ गर्भवासाय नमः ||२०|| ॐॐ अक्षोभ्याय नमः ॥ २१ ॥ ॐ परमधनाय नमः ॥ २३॥ ॐ परम काष्टयोग रूपाय नमः | २४|
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