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________________ नीचे का मत्र पढ़कर वन कवच धारण करने का चितवन करे। ॐ नमो लोए सब साहूणं क्षिप्रं साधय २ का दस्ने शुनिनी दुष्ट रन्द १क्ष हैं फट स्वाहा । (इन्द्रस्य कवचम) ॐ अरिहाय सर्वे रक्ष रक्ष ह फट् स्वाहा (इति परिवारक रक्षा ) पश्चात् इन्द्र दशों दिशाओं में पुष्पाक्षत क्षेपण करता हुश्री विघ्नों की शांति के लिये निम्न शांति पाठ पढ़ें ।। विक्षिपन् दिक्षु सिद्धार्थान, यात विमिश्रितान इन्द्रो विघ्नोपशान्त्यधं शांतिकं तदिदं पठेत् ॥ ॐ हूँ.चं फट् किरिटि घातय २ परिविधनान् स्फोट्य २ सहस्र खंडान करू २ पर मुद्रा छिन्द २ घातय २ प मंत्रा भिन्द २ चा फट् स्वाहा । सुसिद्धार्थानमि मन्य सर्वात दिक्षु विक्षिपेत् । सर्व विघ्नोपशान्त्यर्थं सकली काणं भवेत् ॥ कर्माष्टक विनिमुक्ता गुणाष्टक समन्विता । सिद्धाः सन्निहित सन्तु भव्य सत्व विमुक्तिदा ॥
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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