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जल निधी थल होने तुझ नामे, बैरी व्याघ्रसिंह दूरे बामे t
हय रथ मंगल लहे महमचा, तुझ नामे नव निधि सम्पदा । ४ ॥
कुष्ट रोगश्वासादिक नाशे, शाकियो सर्प न भवे पासे 1
जय जग में जगदम्बादेवी, सेवक तुझ चरणाम्बुज सेवी ५
त्रिभुवन में तुझ नाम विख्याता, नहीं को जननि तुझसमजाना
तुझ गुण तन लावे पारं, जय पद्मावती नाम विचारं ।। ६ ।।
सुरगुरु तुझ गुणा पार न जाणे मूख मानव केम बखाणे |
पाप फलै दुःख दारिद्र भावे, ते तुझ दर्शन दूर पलावे ॥ ७ ॥
अन्य बुद्धि हुँ कोई न जार, कण गति सति तुझ नाम बाण |
तू जिन शासन जन सुखकारी, दुःख दावानल दूरीकृत | हारी ॥ ८ ॥
मस्तक मूर्ति श्री जिन पाय, संवत जन मन पूरश आ
भाग्य कसे तुम दर्शन पामी, कहे गोविन्द नमो शिरनामी ॥ ६ ॥
पत्ता - इद वर जयमाला, भावविशाला जे पठंति निव भावधारी ।
ते अशुभ प्रणाशे, सुरतरू मासे, मनवांछित फल पूर्णकरी ।। १० ।
आरोग्यं धन धान्य सम्पदकरी, दारिद्र निर्नाशनी ।
मौली पर जिनेन्द्र विम्व धरणी, बालार्कवद्भासिनी
॥ २५६॥