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________________ २५६१ •❤ जल निधी थल होने तुझ नामे, बैरी व्याघ्रसिंह दूरे बामे t हय रथ मंगल लहे महमचा, तुझ नामे नव निधि सम्पदा । ४ ॥ कुष्ट रोगश्वासादिक नाशे, शाकियो सर्प न भवे पासे 1 जय जग में जगदम्बादेवी, सेवक तुझ चरणाम्बुज सेवी ५ त्रिभुवन में तुझ नाम विख्याता, नहीं को जननि तुझसमजाना तुझ गुण तन लावे पारं, जय पद्मावती नाम विचारं ।। ६ ।। सुरगुरु तुझ गुणा पार न जाणे मूख मानव केम बखाणे | पाप फलै दुःख दारिद्र भावे, ते तुझ दर्शन दूर पलावे ॥ ७ ॥ अन्य बुद्धि हुँ कोई न जार, कण गति सति तुझ नाम बाण | तू जिन शासन जन सुखकारी, दुःख दावानल दूरीकृत | हारी ॥ ८ ॥ मस्तक मूर्ति श्री जिन पाय, संवत जन मन पूरश आ भाग्य कसे तुम दर्शन पामी, कहे गोविन्द नमो शिरनामी ॥ ६ ॥ पत्ता - इद वर जयमाला, भावविशाला जे पठंति निव भावधारी । ते अशुभ प्रणाशे, सुरतरू मासे, मनवांछित फल पूर्णकरी ।। १० । आरोग्यं धन धान्य सम्पदकरी, दारिद्र निर्नाशनी । मौली पर जिनेन्द्र विम्व धरणी, बालार्कवद्भासिनी ॥ २५६॥
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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