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संक्लिष्टा भय नाशिनी परि रमा, मंमन्य सहायिनी श्रीधरन्द्र राचि पराक्रम युते, पद्मावती भारी
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॥ अथ पद्मावती की आरती ॥
श्री स्याद्वाद मतान् वर्धन करी, भन्पान्सुद्दीपनी । पद्म पद्मदले निवास यदिते दारिदु निनर्देशनी । मौली पार्श्व विनेन्द्र विभ्व धरणी, पद्मावती भारती
इस्पाशीर्वादः ॥
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से देवी नित पाद पंकज नमो वच्ये मुदा आरती ०१ ।।
प्रगट पीठ पद्मावती परतोपूरण हर
कलियुग में अतिशय घों, वांछित फलदातार । २ ।।
अष्टमे पूजा भनी, मिस करे नरवर चंग |
अमर कुमरी घरी आरती करती मन उगे रंग ॥ ३ ॥ चाल - मणिमुकता फल भरि हेम थालं, घृत करपूरा दीप विशालं ।
अमर कुमरी मन आनंद धरती, पद्मावती प्रति आरती करती ॥ ४ ॥ वस्त्रादिक बहू भूषण धरती, अमिय समान वाणी मुखे भरती । अमर कुरु ॥ ढाल चँवर ऊभी इन्द्राणी, भारती त्रिभुवन शिक्सुख दानी | अमर कु० ॥
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