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________________ ॥२५७॥ संक्लिष्टा भय नाशिनी परि रमा, मंमन्य सहायिनी श्रीधरन्द्र राचि पराक्रम युते, पद्मावती भारी " ॥ अथ पद्मावती की आरती ॥ श्री स्याद्वाद मतान् वर्धन करी, भन्पान्सुद्दीपनी । पद्म पद्मदले निवास यदिते दारिदु निनर्देशनी । मौली पार्श्व विनेन्द्र विभ्व धरणी, पद्मावती भारती इस्पाशीर्वादः ॥ J से देवी नित पाद पंकज नमो वच्ये मुदा आरती ०१ ।। प्रगट पीठ पद्मावती परतोपूरण हर कलियुग में अतिशय घों, वांछित फलदातार । २ ।। अष्टमे पूजा भनी, मिस करे नरवर चंग | अमर कुमरी घरी आरती करती मन उगे रंग ॥ ३ ॥ चाल - मणिमुकता फल भरि हेम थालं, घृत करपूरा दीप विशालं । अमर कुमरी मन आनंद धरती, पद्मावती प्रति आरती करती ॥ ४ ॥ वस्त्रादिक बहू भूषण धरती, अमिय समान वाणी मुखे भरती । अमर कुरु ॥ ढाल चँवर ऊभी इन्द्राणी, भारती त्रिभुवन शिक्सुख दानी | अमर कु० ॥ ५ ॥ ६ ॥ २५
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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