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काक तुरंग गिरीन्द्र संभव निविड जलधर संनिभैः,
अप्रूप सुदीपकाष्ट मनोज्ञ घ्नाय प्रमोदकैः । नरवरा• ॥ धूपम् ॥ ७
कान नम्बीर फनसह पूरा चिट लिम्बुकैः ।
गोधनेकषि पाटि फलोचकैः । नश्वरा ॥ फलम् ॥ = ॥
चन्दन अक्षतान् चत्कटैर्वर दीपकः,
धूप पत्र फलोर्व संचय नैक भूषण संयुतैः ।
श्री लक्ष्मीसेन सुरेन्द्र संस्तुत विनिड खलु तिमिरापहं,
पाद पंकज वंद्य गोविन्द मणित मस्तक मोददैः ॥ अर्द्धम् ॥ ६ ॥
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ह्रीं पद्मायै नमः । इस मंत्र के जाप्य देवे ।
* जयमाला
श्री पद्मावत वन्दे वा खेचर नर पर चरणे, I विनशासन उद्धरणे, भी बिन पार्श्व
संस्नापय पद्मावतीचरणं, सेवक नरवर घसरण शरयस् |
बिम्ब धरणे ॥ १ ॥
दुःख दावानल दूरी कृत दलनं, संतत जन सुख सम्पतिकरणम् ॥ २ ॥
संकट विकट कोटि सब नाशे, तुझ नामे सुख सम्पत्ति वासे ।
ग्रह एकोन नदे तुझ नामे, विषम व्याधि दुख दुरे वामे ॥ ३ ॥
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