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________________ २५५ ॥ काक तुरंग गिरीन्द्र संभव निविड जलधर संनिभैः, अप्रूप सुदीपकाष्ट मनोज्ञ घ्नाय प्रमोदकैः । नरवरा• ॥ धूपम् ॥ ७ कान नम्बीर फनसह पूरा चिट लिम्बुकैः । गोधनेकषि पाटि फलोचकैः । नश्वरा ॥ फलम् ॥ = ॥ चन्दन अक्षतान् चत्कटैर्वर दीपकः, धूप पत्र फलोर्व संचय नैक भूषण संयुतैः । श्री लक्ष्मीसेन सुरेन्द्र संस्तुत विनिड खलु तिमिरापहं, पाद पंकज वंद्य गोविन्द मणित मस्तक मोददैः ॥ अर्द्धम् ॥ ६ ॥ ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ह्रीं पद्मायै नमः । इस मंत्र के जाप्य देवे । * जयमाला श्री पद्मावत वन्दे वा खेचर नर पर चरणे, I विनशासन उद्धरणे, भी बिन पार्श्व संस्नापय पद्मावतीचरणं, सेवक नरवर घसरण शरयस् | बिम्ब धरणे ॥ १ ॥ दुःख दावानल दूरी कृत दलनं, संतत जन सुख सम्पतिकरणम् ॥ २ ॥ संकट विकट कोटि सब नाशे, तुझ नामे सुख सम्पत्ति वासे । ग्रह एकोन नदे तुझ नामे, विषम व्याधि दुख दुरे वामे ॥ ३ ॥ ||२५५
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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