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पुनरपि दिक्पालानां ग्रहाणां पुरता पुण्याहं ३ प्रीयंता ३ वृषमादि वर्धमानाताः परम तीर्थ कर देवाः स्वसमय पालिन्यो प्रतिहत चक्र श्वरी, रोहिणी, प्रज्ञप्ती, बज्र श्रृंखला, पुरुष दसा मनो वेगा कालिका ज्वाला मालिनी जया विजया अपरामिता महरूपिणी पाटा अम्बिका पद्मावती सिद्धायिकाश्चतुर्विंशति शासन देवता गोमुख यक्ष प्रभृति चतुर्षि सति यक्षाः प्रादित्य चंद्र मंगल बुध वृहस्पति शुक्र शनिराहु केतु प्रभृत्यष्टाशीति ग्रहाः वासुको शेषपालक वैकर्कोटक पद्म कुलीया नंत तक्षक महापद्म जय विजय नागौ देवनाग यक्ष गंधर्व ब्रह्म राक्षस भूत घ्यंतर प्रभृतपश्च सयते जिन शासन धर्म पालकाः ऋष्यार्जिका भावक श्रावि का यन क्रिया याजक राजा मंत्री पुरोहित सामंत रक्षक प्रभृति समस्त लोक सहभ्य शाति पृद्धि पुष्टि तुष्टि क्षेम कन्यासोश्वर्य
आयुरारोग्य प्रदा भयंतु सर्ग सौख्य प्रदा मगंतु देशे राष्ट्र पुरे च सर्वदा एव चौरासीमारीति दुर्मिक्ष विग्रह विघ्नौष दुष्ट भूत शाकिनी प्रभृत्य शेषाग्निष्टानि विनयं प्रयान्तु राजा विजयी भवतु राजा सुखी मवतु सजा प्रभृति समस्त लोकाः सततं जिन धर्म शीला पूजा दान व्रत शील महा मोहना व प्रभृति प्रजाभवतु यस्थिताः भव्य प्राणिना संसार सागर लीलयोत्तीर्यानुश्ममं सिद्धि सौख्य मनंत कालमनुमनंति, तदा शेष प्राणीगा शरण भूता जिनशासनं दविति स्वाहा । वलि विधानमंत्रः इति शांति काणीया.
आयाताः यूयमेते, प्यमा परिधृताः, प्राप्तसन्मान दानाः ॥ स्थाने स्वस्मिन्समाःणं, प्रमुदितमनसो, लब्धरचा धिकाराः ॥ निघ्नंतो विघ्न वर्गान, परि नन सहिती, योगभूमि समन्तात् ॥
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