SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 273
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - - २३.1 - - - - - - अथ दिक्पालानां ग्राणां पुरतो वस्ति विधान पलिभिः कुर्वीत प्रहाः सूर्य चंद्रांगारक बुध वृहस्पति शुक्र शनि राहु केतु सहिताः साष्टाविंशति नक्षत्राः अश्विनी भरणी कृतिका रोहिणी मृगशिर आर्द्रा पुनसु पुष्य अश्लेषा मघा पूर्वा फागुनी उत्तरा फाल्गुनी इम्त चित्रा स्वाति विशाखा अनुराधा ज्येष्ठा मूल पूर्वापादा उत्तर पादा श्रवण बनिष्ठा शतामपा पूर्वाभाद्र पद उत्तरा भाद्रपद रेवती अमिति सलोकशाला यात वरूणा कुवा बारावाद्या कन्द विनायक दक्षिण काश कोष्टा मारा दीनां आयुर्वद्धताम् धर्मो बद्ध तां पुण्यं वदनी कुलगोत्र चामिवधताम , पुर राष्ट्र ग्राम . च परचक्र' तस्कर दुर्भिक्षमारोति कला र देरी रोगाद्य पद्रव विकाश नाय नित्यमहन्तो मंगलं प्रयच्छंतु, पुनः सदा दान पतीनों भावकाणांच भ्राद पुत्र मित्र कलन स्वजन संबंधी बन्धु वर्ग सहितानां धन धान्यैश्वर्य यशो विभूति कांति बल धुति कीर्तयो कन्ता, सर्वम्मिन् जिनायतन मंडले श्री कीत्यैश्वर्य महाभियेकोत्सवे पूजाभिवर्धये च यतीनांच तत्र निवासिमा रोग शोक व्याधि उपमर्ग दुःख दोघल्प पर हनानि विनाशयन्तु । पापानि नश्यतु घोराणि निघ्नंतु प्रति शत्रवः पराङ्गमुखाः संतु देशाश्च निरुपद्रवाः भवंतु सर्व कालमपी सर्व कल्याण संप्राप्तिस्तु भूयोभूयः श्रेय प्राप्तिरस्तुं सुखं हितैश्वर्यमेवास्तु शिवंच सत्वानों ऋषि ऋषभादयः सदादिशंतु स्वाहा ।। इति शांति मंत्रः पुनरपि जिनाये । ॐ महद्भयो स्वाहा, ॐ सिद्ध भ्यो स्वाहा, अपुरीभ्यो स्वाहा ॐ पाठकेभ्यो स्वाहा, ॐ सर्व साधुम्यो स्वाहा, अतीतानागत वर्तमान त्रिकाल गोचरानंत द्रव्य गुण पर्यायात्मक वस्तु परिच्छेदक सम्यकदर्शन ज्ञान चारित्राद्यनेक गुण गणाधार पंचपरमेष्ठिभ्यो नमः ॥२४३
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy