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________________ ॥२४२ समतिय समाणु पर दध्यु बिछाई जेखि सिमोपण वज्जिया दिति सुषत हंदाचं वह साचयहं सकरोमिहऊ कुसुमांजलि सम्माशु जेहि मनिनई धम्म दयामूल बिग्ाथ रिष्टि परमगुरु सुहफ्यास संतास वज्जिय जेसइइ देउ जि पऊ अट्ठारस दोस बज्जि व | जे सामिया कि महिय न जाई, एहसम धुप दिनमई कुसुमांजलि भवियाह ॥ * ग्रंथ शांतिकम् अथ चतुर्विशति का पूरत: शतपत्र स्तंदुलैः श्रीखंडादिभिः शांतिं कुर्यात् ॐ पुण्याहं ३ श्रीयंत भगवतोदक जगख शशिक पूज्याखिलोकोद्योत कराः ऋपमाइयो यद्धमानांतश्चतु विंशति अन्त: सर्वज्ञः सर्व दर्शिनः सभिन्न नमस्कारा देशधि देवता ऋषभाजित संभवाभिनंदनसुमतिपद्मप्रभ सुपार्श्व चंद्रप्रभ पुष्पदंत शीतल श्रेयांस वासु पूज्य विमला धर्म शांति कुन्थु भरदे मन्त्रि मुनिसु व्रत नमिनेमिनाथ पार्श्वनाथ वर्धमानां सशिष्य वर्गाः शान्ति कराः भवन्तु मुनयश्च दृढव्रतः शान्तिं प्रयच्छन्तु श्री ही धृति कीति बुद्धि लक्ष्मी वनदेपो विद्या साधन प्रस्थान करणादिषु स्वगृहीत नामानि सर्व कार्य साधनेविवान्यत्र सिद्धाः सिद्धिकरः भवन्त, सर्व देव रिपू जय दुर्ग कांवार विषमे षु जयन्ति जिनेन्द्र चंद्राः परम मांगन्य भूता । परम कल्याण दायिनो नित्यमाचार्यः साधवश्चातुर्वर्णा श्रमण संघ सहिताः शान्तिः प्र६च्छन्तु G 1 .... 21. F THEKE
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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