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जिवय संगम निवमधर । पंचाचार समुन्नवहं आयरिग एह कुछमाजति २ई दीन ॥ ११ ॥ नेहिं वसि किउमाण, मायंगु अयंदुसार कोहजिन || कबड्डु घसा दुबार नठऊ सम्मतु मणुपिक कविहि लोहू " पसरंतु रूधन मषियह, भववणि मुल्लाह ॥
मुगदेसय दाई, दिमपनये, पाठ यह इय कुसुमांजलि ताह ॥ १२ ॥ जियपरिसह मोह परिविच, वारस विहित तवनिय रूपाय । भयसंग बज्जिय जिय इंदिय विसय, मुह काम फोह नियमणु विसज्निय जीव दयावर गुमा निलय, विणय समुज्जय चित्त ॥ एइ कुसुमांजलि समर यह, तेह साहुई मई खित्त ॥ १३ ॥ विमल कोमल अमनदा नयशी, कमला लय मुहि कमलहछ कमल किया समि, जाविषय संपयधरहं दुरिय दुरक दोहग नासथि, नाजिया वपण, वियाग्गाई सपल पयासई । लोहितहि देवीहि, सिरि सयही एह, समाजलि होई ॥ १४ ॥ बाह निम्मणु हियई सम्मतु सब्ब उवव हई जीव इसन कय विछद्र पर घरपी णिय अपने
रिक्ष