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________________ २३६॥ संसर्गेण, सुगंधिना बहुविधेन गंधोदकेन, भगवन्तमर्हन्तं स्वापयामः सुरभित वनांत कीति मस्माकां करोतु भगवानिति स्वाहा । * अष्टक क सद्गंधतोय: परि पूरितेन, श्री खंड मान्नादि विभूषितेन ॥ इति गंधोदक स्नपनम् ॥ पादाभिव प्रकरोमि भृत्यै, भृंगार नालेन जिनस्य भाजलं काश्मीर पंक हरि चंदन सार सांद्र कपूर पर रचितेन विलेपनेन ॥ अव्याज सौख्यय तनोः प्रतिमां जिनध्य, संपर्चयामि नत्र दुःखविनाशनाथ चंदनं ॥ तत्काल सक्ति ममुपार्जित सौरूप दीज, पुण्यात्मरेणु निकरैरिव संगलद्भिः ॥ पुः कृतै प्रतिदिनं कलमावतोयैः पूजां पुरोविरचयामि जिनाधिपानां गतं ॥ अम्भोज कुंद बकुलोत्पल पारि जात, मंदार जाति विदलनयमालिकाभिः ॥ } देवेन्द्र मौलिविरजी कृतपादपीठं, भक्त्या जिनेश्वर महं परि पूजयामि पुष्पं श्रत्युज्वलं सकल लोचन हारि चारू, नानाविधा कति निर्वेद्यमनिंद्यगंधं ॥ पाव माम मनवीयासिहेम पात्रे, संस्थापितं जिन वराय निवेदयामि नैवेद्य ॥ निष्कज्जल स्थिर शिखा कलिकाकलाप, माणिक्यरश्मि शिखराणि विनयमिः सर्पिभिरुज्वल विशाल तराजलोके, दीपै जिनेन्द्र भवनानि यजे त्रिसंध्यं ॥ दीपं ॥ कपूर चंदन तक सुरेन्द्र दारू, कृष्णागुरू, प्रभृति चूर्णवि धान सिद्धम् M ॥२३६॥
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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