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________________ ११८ स्वच्छाया दयाधन मुनिमनोभिरिव निमितेन नवी नवीनाकुश छायापहारिणां हारि हरिण तरसतर लोचनप्रभा प्रवाहिया, परकीय यशः प्रकाश सज्जन गुण विमलेन मुक्ता फांशु बाला मालाकालयता पीयूषर सेनक, सर्वेन्द्रियाणां प्रणिन, करेण निमस तया लोचनानंदमुत्पादरता सुमंधि कमल संबंधितया घाणे न्द्रियाप्यायनमादधत समुचित शिशिर तया स्पर्श सुख मुय जनपता गंध जिधासयानुयातु मधुकर झंकारेण श्रवणमानंदपता चितया चांतः करण माज्जेता, रजनी पति ज्योति परि स्पष्ट चंद्र कान्त शिवाइन सम्मिश्रितेन भच्छ स्फटिक छाया शुभ्र मा सलिलेन भगवन्तमर्वन्तं मापयामः, सर्वमभिलषित मस्माकं करोतु भगवानिति स्वाहा । इति चतुः कलश स्तपमम् ।। द्रव्यैरनल्य धनसार चतुः समाय, रामोद वासित समति दिर्गालैः ॥ मिश्री कृतेनषपसा जिन पुगवानां त्रैलोक्य पावनमहं स्नपनं करोनि ॥ ॐ यथा लब्ध सुगंध पदार्थ संयोग सुंदरेण केनचि दुनिन्द्रारविंद मकरंद रचित चारु चंद्रिकेन, फेनचित्पुष्पित कुमुद कुचलय रज पाया मोदितेन, केनचित्प्रचल दलि कतिध कारी सौगधिकगंध सम्पन्धेन, अपरैरपि बलनात बसुभिर्वहुन परिमला कारिभिः सुरभि कृतेन, सम र पर्याश्रित लवंग पृक्षात् पतित रप्त पुष्प निष्पंद संग संजनित हृद्य गंधेन, प्रविक सच्चंपक कुसुम समूह वासितेन, साधुगंधा धाणे मुदित मधुकर फुल्लरवि चावालितेन, मृदुपटु निमज्जदैरातदान संक्रान्ति सुरभी कृत मंदाकिनी प्रवाह पराजय कारिसी करि कलशमान चंदनानोद कांघ देश फिनिश्रित रस धारा विकासेन, कुम पूरादि ॥२८॥
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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