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________________ २ मध्यांजन नील केशर मार कमलापतन यान सकल शशि बदन पीनोन्नत पयोधर बिम्बाधर विपुल जपन श्रृंगार देषविभूषित स्मित हसित विमल विलास लावण्य हावभाव ललित पृथु शिथिल रसना गुख गण कलादिमिदिव्य देवांगनाभिश्चाप्सरोगध सहितामिः शक्र प्रबोधिताः देवगणाः मत्तभ्रम मर किलकि ली मृदु मधुर वचन लसित फुल्ल बन्नी गुन्म द्रुमपतित पुष्प वासिता नेक द्रम मंडप कानन बनदरी गुहारण्य तल नितम्ब संशोभित मंदर कूटै अनेक रत्नोज्वल कूट कोटि परि मंडितो विधिना सिंहासने संपादपीठो - निक्षिप्यतान् जिनेन्द्रा लोक्य महितान् त्रैलोक्योद्योतकरान् देवाधिदेवान् स्नापयाश्चक्रिरे । यथा कोकनद कुमुद कुवलय कल्हार सौगन्धिक चंपक पुन्नाग बकुम तिलक सहकाशोक कुवक कर्णिकारक केतकी कुल्ल शाल तमाल दाहिम मातुलिंग पियंगु नव यूथिकाः वासंतिका जाति मन्लिका माधवी ककुम रक्तोत्पल कुटज कोरंट पाटली कुंद मंदार कदंव कदली सिन्दुवार प्रभृति जल स्थल जनानेक पंच वर्ष सुरमि कुसुमोपहार पुष्प पास धूप दीप विचित्र नृत्य गीत दिव्य स्तोत्र मंन्द्र पवित्र मंगलाभिधानः क्षीरोदधि सलिल कुसुमपरिपूर्ण मंगल रजत कलशैः एवं कृताभिषेका, इहाप्यनेक गंधोदक परिपूर्ण कल शैरभिषेवनं प्रतिगृत्यतामिति स्वाहा इति सर्वोपधि स्नपनम् । इप्टैमनोरथ शतैरिव भव्यपुसा, पूर्णः सुरणं कलशै निखिताकतानः ॥ संसार सागर विलंघन हेतु सेतु, मालावये त्रिभुवनैक पति जिनेंद्रम् ॥ ॐ जाबनदरजातादि. मय कलश बदन विनिर्गतेन बोपल संघातेनेर द्रन्यतामुपदितेन पालेय गिरिणेव द्रवी भूतेन जिनस्नपनाय स्वयमागतेन धनांत हरिण लांछन मरीचि कलापेनेव रासी भूतेन . . . ||२३७॥
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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