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दय स्फुरद्गुरु विद्य द्विलास लोल ज्वाला कुल प्रभा कलाप मालालंकृत पात पंकज दयाल धर्म तीर्थ कराय धर्म नाय काय श्री मत्सिद्धार्थ राज कुलाम्बरोदिताय विविधानेक विमल सम्पूर्ण लावण्य गुण गणोदयामिरामावि शय विशेष केवल ज्ञान किरण प्रकाशित सकल जगत्रय भव्य जन प्रति बोधकाय श्री बद्ध पान दिवा कराय असुर सुर मुनि गण मनुज्ञ प्रतिमोह प्रकर्षमति संशय मूढ़ संकल्पान्ध कारोच्छेदन कराय इभ्या अवतपिएका ज्ञानां सर्वदर्शिनां अष्टो तरसहस्त्र मक्षण व्यंजनविधि त्रित जलदमल कमज्ञ विलासविसद्धि ल झचिर वर चरणानां चतुनि शति तीर्थ कराणां वृषम जिनेन्द्रा दीनां वीर जिनाधीश पर्यन्वाना अत्र बुधोत्पत्ति मतुलया परम माया देवाश्चतु जिंकायाम हणिगण भवन वासी व्यन्तर ज्योतिर्गण विधाघर चक्रवर्ती बलदेव वासुदेव सिद्ध चारण किमर किं पुरुष महोरग गरुड़ गान्धर्व यक्षरासस भूत पिशाप गज गय महिष वृषमवर तुरंग मकर स्वकर भवमर रह करीण बराहाप्टापद गुरू व्याघ्र हरिगड चक्कुट कुरूर करंड सारस कलहंस चक्रवाक बलाका पद रथपान किमान बाहनाधिरूड़ा वर कनक किंकिणि काना मुकुट मुक्त्तादाम कलाप मालालंकृत विवुधा कीर्णविभाग शरदमल पूर्ण चंद्रद्यु तिहर वर विकृतोद्धत क्षत्रायुधं चामरमणि ध्वजयताकावर शंख पटह दुन्दुमिमेरी तालकाइल मृदंग तुर्य बेणु बीणा पल्ला बल्लरी प्रमुखोत्कृष्ट फलकल प्रतुभित समुद्र योपसिंह निनाद सहर्षा तुल घोष कोलाहल समततोन्य घुति विभमान् रिकता पर्द्ध'इव दर्शयन्तां विमल रूचिर माणिक्य कनक रजतमय ज्वलइमन ॥ लंकार प्रलंब घर हार कुडलांगद मणि केयर कटक कटि सूत्र मुकुट धरा रूचिर आपलं नव यौवन मदनोन्मादक विमल जलावति विमुल गंभीर नाभि प्रजाय मानसिति रूचिर घर रोम राजि विभूपित त्रियलित रंगतनु
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॥२३६॥
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