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ॐ संस्नाषितम्य घृत दुग्ध दधीनुगः ॥ ___ सर्वाभिरौप घिभिरहे तमुज्वलाभिः ॥
उद्घति तस्य विधाम्यभिषेक मेला ॥
बचीय कुकम रसोत्कट पारि पूरैः ॥ ॐ पलाति बला सहदेवी, मलयजा जात्य कुकुम एला लवंग कंकोल नाम केशर महौषषि पृष्ठाः पणि शाला परि मुद्पर्शि माषपणिं जय विजय| अमृता सुगंधा सुरदारा जौवक ऋषभक काकोली धीर काकोली विशदा मोहिनी शता वरी ही बेलि कादि औषधिगण मिश्रितेन इन्द्र हस्तोनिता भरण विमिश्रितेराजित श्रोत्रप्रवाहं पच बर्ष लिट्गत शोभा प्राप्त साश्चर्येश अनेक देशंगना विरचित जय जए शब्दात्पन्न कोलाहला गत भन्य जीव कृत श्रद्धानेन, बहु शुम सुगंध वस्तु निक्षिप्ता जीव जल प्रवाह मंदाकि नी प्रमाणेन, नानाविघदे शोत्पम सौंषधि परिमल सुगंधि कृत समस्त चैत्य अवनेन, सौंषधिपयः पूरेण सकल विमल केवल ज्ञान दर्शन जिनेश्वरं संस्नापयामि, चतुर्गति क संसार दुःख मस्माकं ममवान् स्फोट यत्चामंति स्वाहा ।
" सर्वोषधि मंत्रः ।। ॐ नमो ईते भगवते श्रीमते त्रैलोक्य गुस्वे त्रिदशेश्वर मणि मुकुट मस्तक स्पष्टी कृत बिमल रुचिर पर कनक विकृत स्फुट लटर मुकुट किरीट कोटि परिमंडित मरफतेन्द्र मौन महा नील चन्द्रवान सूर्य कान्त पद्मराग पुष्पराग बनौदर्य प्रति विविध प्रकारानेक रन चूडामणि गुण गणो
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