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विश्वामेनों प्रसर्य द्वहल कल कलं, मेदिनी अश्नु पानः ।
___स्तादैनः शातयेनः क्षपित जगदद्य, चोच तोयौंच एषः ॥ ॐ ही भी क्ली ए' अहं हं संरा तंबई है सं सं तं तं पं पं भी भवी वी ची द्राँ द्रीं द्रावय द्राश्य नमोहतेभगवते श्रीमते पत्रितर नालि कर रसेन जिनमभिषिच यामि स्वाहा,
।। इति नालि केर रसेन स्लपन॥ श्री शात कुभ कलशोद्ध तशुद्ध वर्णः, सकुकमाम मधुराम्ररस अकैः रागादि वरिपरि मईन लब्ध कीर्ति, श्देती कृता समभुवनपयामि वीरं ।
ॐ निरुपम मद कल कल कंट वचन रचन चातुरि चमत्कार सहकाराणां, श्रामोद भर भरित दिगंत राल विर संधाना अनेक शुक पिक कंठ माधुर्य धुरीणां, पंचम कोका कलित ललित श्रुतीना, विभूति बहुत परिमल पृथुल फलभागणां, अभिनव धन यटल श्यामल द्वेदोतीषां निंदी थीर मधुर झंकार मुखरित शाखाम्टमृगाणां, गगन चुम्बितां दोशित पल्लवाना, निजमहिम विनिर्जित वर्जितरुणां, अमंदभ करंद अवधारित शुद्ध बोधैः सिद्धरस रिवाखिल सिद्ध कारक मरकत मय कपि कार फल संमृत्यै हत्तप्त सुवर्ण प्रभैरप्पामोद सुभगैः धनद निर्मित पंचाश्चर्यैरिव माणिक्य पुष्पराग प्रयास विधु दर्शितं रत्नत्रयारपरिव सुदर्शन पर्वतार स्थितमहं तुम्हा भिषकोत्सब मनोहरै रति पवित्र तमान रस: फल संभूतः ॐ तुष्टि करैः पुष्टि करैः पक्व पुष्पैर्मधुरैर्मनोहरः गुरुवननरिव गुरुमिश्वानरसै स्नापयामि स्वाहा ॥
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भाम्ररस स्नपनम् ।।