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________________ -||२३०॥ शुचितमः प्रदेश संभूतैः , शुक्लाभिरं भोभरनेभिः ॐ एतानि जिनानागसंग मंगला निदाद्य तप तप्त सकल जगतापापनोदन दक्षानि, जिन चरणाराधना शकस्य, संबद्धन कराणि, स्नान सलिलानि जगतः, शांतिं कुर्वन्तु साहा, ॥ जलस्नपनम् ॥ पुण्य भिः प्रसर्पत, परिमल सहित, रक्षत रखतांगैः, पुणे पुष्पद्भिरन्त श्चरुभिः, शुभवरे, दीपयमिः प्रदीयैः ।। धूपैः सव्य नव्य रूप हत गुणैः, संफलैः सफलाध्यैः ॥ पुष्प जल्योय युक्त, स्त्रिभुक्नमहितं, संयजे देव देवं ॥ मर्यम् उत्कृष्ट वर्ण नब हेम रसाभिराम, देह प्रभावलय संगम लुप्त दीप्तिं ॥ भाग घृतस्य राम गंध गुणानु मेयां, वंदेऽहत, सरम संस्नपनोप पुक्तां ॥ ॐ बिर्लानि जावरूप रस धारा समुज्जलायाः, उदयमत बाल तरणि किरणारुणारुवा, नवजल घरधीर ध्वनि हेतु समुन्मिरवतरल ताडदंड बिडंवन कारिएया, श्रेष्ट मंजिष्टा निर्यास वर्ष मुपहनन्त्या, मनः शिलाभंग समुत्थित रेणु पिंजरयानि सुख सहकार हरि दाथि निप्पंद मनो हरया, सुगंधि कमल मकरंई कणिका रजपुंजपिरितमिधान देशं, निजय ति निभवेन, जनयन्त्या मृदुपयन रिसर्पमान, परमामोद सुरभि कृत, समस्त ककुभागया, धनसार सौरमभर समहत्या . . . २३०
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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