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________________ %3D २२६॥ - - 6 इलिभक्त पिंडिका बतारणम् . पूता वनौ पतित शीतल भूति पिंडैश्चंद्रांशु खंडधवः कर कुड्मन्नस्थै, भारमार्थमष्टविधकर्स महेन्धनस्य, बोकेश्वरस्य परिवर्तनमा तनोमि । इति भस्म पिडकावतारणम् । हस्त द्वयाग्र कलितामलतार्ण जूटः कोटिस्थितन शिखिना सुख दर्शनेन ॥ निर्दग्ध कर्म रजसो जिननायकस्य, नीराजनं सटिति दरत एब कुर्वे ॥ a इति नीरांजनाः वतारणम् दूरावनम्न सुर नाथ किरीट कोटि, संलग्नरत्नकिरणच्छविधमरांधीः ॥ प्रस्वेद तापमल मुक्तमपि प्रकृष्ट, भन्या अलैजिनपति बहुधामिपिश्च ॥ ॐ जिन पतिमतिरिव सर्वजन जीवनैः, सज्जन मनोभिरिव स्वच्छ तमैः, तर्फ शाख रिव बुद्धि बर्द्धनैरनुपचार प्रसादित, स्वामि सन्मान दानखिसंतर्पकः, पौवना रंभरिखमनोहर , ___ चतुरस्त्र बन्धु जन संमुत, रिव सदा क्लादने हैतुभिः, शशिकिरण प्रकरैरिवातिशीतलैः , नदीनद वापी कूप तड़ागसरोबरादि, -
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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