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________________ - अश्वन्धोध समित्प्रपक्य चरुमिः, शाल्योदनाय रहम् ॥ पदमस्थं प्रयजे जिनेश्वरमह, वाचस्पति संग्रह ॥ हे बृहस्पति आगच्छ २ वृहस्पतये स्वाहा, इति पीपल ईधन पीत धजसहित नैवेथम् :: शेपं पूर्ववत् ।। ॐ वायु देवोषिताशा श्रितं, स्कुर द्रोवि ज्वालाचल नागपाशायुधं ॥ दिए का गुरहे हमानिष्टितं, सातामो हमस्मिन्रिमतं सद्ग्रहं ॥ शुक दर्भः । ॐ वायव्याशा भितोयः, शशविशद तनुः सप्तचाप प्रमाणं ५ देहोरंधोक्षमाला परिकरि प्रकरो, . प्रम्ह सूत्रांकितोः ॥ सूर्यादेको नवत्यामुपरिंगतो, योजनानां जनोय ॥ ___दृष्टीयं जीय लोके परिणयन, जिनस्थापनाघं करोति ॥ दिव्यं यस्योनहन्ति न्फुरदमलरुचि, क्रोशमात्र विमान ॥ _ सिंहेभ्यो चाश्व मुख्य तुहिन किरण, जश्चाद्य संख्या प्रमाणं ॥ यस्मिन्पन्यं प्रतिष्ठं शत युत मरुजै, जीवितं वत्सराणाम ॥ पालाशोन्सेधपक्वैः सघृत गुरु युतैः, सांस्थितं तर्पयामः ॥ हे शुक्र प्रागच्छ २ शुक्राय स्वाहा, खे, जई धन नैवेधं, शेषं पूर्ववत् ।। ॐ उत्तरस्यादिशि स्फुान्मेच कांग, घ तिं कृ.पण यज्ञोपवीतादिभिः ॥ भूषितं चात्मदात्रकन्वितं, देव देवाभिषेकेशनिमब्दये ॥ शनिदर्भः ।। - - - - - ॥
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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