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________________ २३॥ ॐ दक्षिणस्यां दिशि तस्थ वासं, निधूम धूमध्वज देह दीप्ति ॥ उत्पादजं सप्त धनुः प्रमाणं चक्र यजे पन्य दलायुतं " उत्तर गोलार्द्ध निर्भ जयाधं द्विक्रोशमात्रद्विमहस्त्रसंख्या ॥ सिंहेभ गोरवा कृतयो भियोग्या, बहन्ति यानं प्रतिपस्यविम्बं ॥ भौमदर्भः ॥ ववध्यता खदिर ईश्वर सहित नैवेयं ज्यूयेन दशभि विहाय वसुधा, यो योजनानाम्यरे ॥ पत्नी बांधव मृत्य वाहन सुहृत, शस्त्रायवर्णान्वितं 11 तो लोहित चन्दने घुसणे, दर्पश्च रक्ताचतैः ॥ धूपैखं जुसेलगुग्गुल गुड, स्योयेग कर्पूरेजै: नैवेद्य गुड शर्करा घृत युतैः शीतोदक प्लावितैः ॥ गंवा सकतुभिः सुखदिरां, गार प्रजुष्टै मैनाक द्राक्षेक्षा रखें. रमक कुसुमं संसेवनाचे फलैः ॥ 7 I TI यज्ञोऽस्मिन् परितर्पयामि बहुश, श्रीलोहिताय ग्रहे ॥ स्वाहा शेर्पा पूर्ववत् ॥ हे मंगल आगच्छ २ मंगलाय ॐ यातुधानि दिशं स स्थिति ग्रहं पुस्तकं न्यस्त हस्ते स्मिता या जंचारू सूत्र स्थालंकृतोर स्थलं ददाहवोऽहमाहयानये ॥ बुधदः ॥ ॥२२३॥
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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