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ॐ ह्रीं णमो आई रियाणं, ॐ ह्रीं सामो अझायाणं, ॐ ह्रीं णमो लोएसच साहू ।
अप्ठोचः सहस्र जाप्येनेन्द्रेणात्म शुद्धिः कर्तव्याः ।
पश्चात् निम्न मन्त्र पढ़ते हुवे २१ लोग अपने दोनों हाथों को सऊंनी ( अगुष्ठ के पास वाली ) अंगुली से पकड़ कर अपने सिर पर रखता अपने श्रापको इन्द्र होने का चितवन करे ।
ॐ वनाधिपतये ओ हो म ऐं ह्रीं ह्रः सू हैं . इन्द्र संवौषट् एक विंशतिवारानात्मान मधिवासयेत् ॥
( इति इन्द्र आहवाननं ) पश्चात् मुकुट, कुण्डल; मुद्रिका, कंकण, मेखला, करधनि, आदि अभूषण धारण करे ।
चो निर्मली करण मन्त्र है ॐ हीं श्रीं बद पद वाग्वादिनी नमः स्वाहाः ॥ यह मन्त्र पढ़ कर धर्भ शलाका से अपनी जीभ पर जल छांट कर वचन शुद्धि करे ।
। शिस्त्रा बंधन मत्र । ___ॐ नमो भयवदो बढमाणस्स रिसहस्स चक्क जलं गच्छ २ आयासं गयाल लोयाणं भूयाएं जुगमा विवाहो वारायंगणेवा घणेला मोह मेर रक्ष २ शहा । ॐ ह्रीं वषट
इस मंत्र को पढ़कर चोंटी के गांठ लगाये ।