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________________ ७ ॥ ॐ ह्रीं णमो आई रियाणं, ॐ ह्रीं सामो अझायाणं, ॐ ह्रीं णमो लोएसच साहू । अप्ठोचः सहस्र जाप्येनेन्द्रेणात्म शुद्धिः कर्तव्याः । पश्चात् निम्न मन्त्र पढ़ते हुवे २१ लोग अपने दोनों हाथों को सऊंनी ( अगुष्ठ के पास वाली ) अंगुली से पकड़ कर अपने सिर पर रखता अपने श्रापको इन्द्र होने का चितवन करे । ॐ वनाधिपतये ओ हो म ऐं ह्रीं ह्रः सू हैं . इन्द्र संवौषट् एक विंशतिवारानात्मान मधिवासयेत् ॥ ( इति इन्द्र आहवाननं ) पश्चात् मुकुट, कुण्डल; मुद्रिका, कंकण, मेखला, करधनि, आदि अभूषण धारण करे । चो निर्मली करण मन्त्र है ॐ हीं श्रीं बद पद वाग्वादिनी नमः स्वाहाः ॥ यह मन्त्र पढ़ कर धर्भ शलाका से अपनी जीभ पर जल छांट कर वचन शुद्धि करे । । शिस्त्रा बंधन मत्र । ___ॐ नमो भयवदो बढमाणस्स रिसहस्स चक्क जलं गच्छ २ आयासं गयाल लोयाणं भूयाएं जुगमा विवाहो वारायंगणेवा घणेला मोह मेर रक्ष २ शहा । ॐ ह्रीं वषट इस मंत्र को पढ़कर चोंटी के गांठ लगाये ।
SR No.090446
Book TitlePraching Poojan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Chandra Jain
PublisherSamast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size6 MB
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